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शांति का समर

कृष्ण कुमार

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 12514
आईएसबीएन :9788126715701

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भारत और पाकिस्तान के संबंधों में भावनाओं, विचारों और सन्देहों का एक बड़ासा जंजाल आजादी के समय से फैला हुआ है, जो समय-समय पर टकराव की स्थिति पैदा कर देता है। इस पुस्तक में इस जंजाल की छानबीन गहरे धीरज और इस आशा के साथ की गई है कि दोनों देश अपनी-अपनी राष्ट्रीय अस्मिताओं को बनाये रखते हुए शांति के एक नये दक्षिण एशियाई संदर्भ की रचना कर सकते हैं।

महात्मा गाँधी की हत्या से लेकर कश्मीर-समस्या और विश्व स्तर पर उभरे अस्मिताओं के संघर्ष तक अनेक विषयों की पड़ताल करते हुए लेखक ने कई महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार किया है। राष्ट्रपिता की हत्या क्यों हुई ? विभाजन के इतिहास को अनुभूति के स्तर पर आज किस तरह देखा जाये ? गाँधी और जिन्ना की विरासतें आज तक हमें किस तरह प्रभावित करती रही हैं ? आदि प्रश्नों की मदद से यह पुस्तक हमें विचारोत्तेजक समाधि की अवस्था में ले जाती है। इसे पढ़ते हुए हम शांति की संभावना को लेकर एक नई तरह का तर्क रचने की प्रेरणा पाते हैं जिसका आधार बीते हुए कल की रूमानी यादों में न हो। दक्षिण एशिया में सामूहिक शांति के पक्ष में सहमति बनाने के सिलसिले में यह पुस्तक बच्चों और युवाओं की शिक्षा के अलावा मीडिया की भूमिका पर भी रोशनी डालती है।

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